कुछ बातें थी अधूरी सी, कुछ थी अनकही सी ।
उन अनकही बातों की दास्तान अभी बाकि हैं ॥
चल पड़े थे तलाश में कुछ अजनबी मंजिलों की ।
उन अजनबी मंज़िलों के इम्तिहान कई बाकि हैं ॥
बेजान सपनों की ख्वाहिशों में टुटा हैं दिल अक्सर ।
पर टूटें हुए इस दिल मैं आरजू अभी बाकि हैं ॥
कुदरत की बेवफाई से चाहे हारें हैं ख़्वाब सारे ।
पर हारें हुए उन ख्वाबों में हौसला अभी बाकि हैं ॥
देखीही नही तूने ताकद मेरे इरादों की ।
इन इरादों की असली उड़ान अभी बाकि हैं ॥
ऐ ज़िन्दगी, जरा संभल के खेलना ।
इस खेल में अभी चाल मेरी बाकि हैं ॥
Yes..kya khoob likha hai..mere in iradon ki asli udaan abhi baaki hai..surekh...
ReplyDeleteBahut badhiya
ReplyDelete....
ऐ ज़िन्दगी, जरा संभल के खेलना ।
इस खेल में अभी चाल मेरी बाकि हैं ॥
Khup sundar kavita...
ReplyDeleteखरच खूप सुंदर लिहिता तुम्ही।।।।।
ReplyDeleteWhat a wonderful piece of writing. Kudos to you Rupali
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