हजार लहरें उठती है
वो आती है चली जाती है ।
बस्स पलकी वोह साथी हैं
जो लेती है वोही देती है ।।
नदियाँ संग उसकी बहती है
मछलियों की तो यहाँ खेती है ।
खजानेको यही छुपाती है
हरियाली के संग ये सजती है ।।
हवा के सूर में सूर मिलाती है
जलतालपर नाचती है ।
चंदा के संग रूप बदलती है
संग अपने शंख वोह लाती है ।।
गलतीसे कुछ ले जाती है
वापस वोह लेके आती है ।
जो अच्छा लगे वोह पाती है
इसीलिये कोई नाव कभी डूबती है ।।
सागर किनारे रेती है
चमचम चमकती रहेती है ।
धुपको भी वोह सहेती है
लहरोसे शांत हो जाती है ।।
निसर्गको ये सजाती है
दूरदूरतक शांती फैलाती है ।
इसी अदापर तो दुनिया भाती है
उसकी तरफ आकर्षित हो जाती है ।।
यहा आनेपर पास वोह बुलाती है
रेतभरे पैर वोह धोती है ।
मिठी -मिठी बाते करती है
इसीलिये संग उसकी गहरी दोस्ती है ।।
- रुपाली ठोंबरे
रेती => रेत (In Hindi)
ReplyDeleteThis shows that Language doesn't make difference to express emotions.
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