Thursday, March 19, 2015

पंखुड़ियाँ उसकी उड़कर गयी दूरतक....

( आज कभी पढ़ाईके लिए तो कभी काम के लिए बेटियाँ अपने घरसे दूर आती हैं । तब शायद वोह यही महसूस करती होगी )

एक दिनभी न ऐसे गुजरता है
कि याद तेरी नहीं आती है ।
पल-पल मुझे युँ सताती हैं
क्या करू मैं समझ न आता  हैं ।।

सपनोंका जैसे प्यारा घर अपना
याद दिलाता साथ बचपनका ।
उसकेबिना आज न कुछ लगे अच्छा
चाहें हो यहाँका माहौल सच्चा ॥

माँ के हाथोका कोमल स्पर्श
साथ दिया जिसने बरस बरस ।
आज पर मन गया है तरस
न जाने कब मिलेगी फिरसे वोह गोद ॥

बेटी नहीं मैं बेटा हूँ पापाका
मुझमेँही छुपा है ख्वाब उनके जीवनका ।
इसीलिए भेजा हैं दूर ये दिलका टुकड़ा
पर महसूस करे न जाने क्यों खुदको वोह अकेला ॥

राखीयोंके वोह प्यारे दिन
याद दिलाये भाइयों संग गुजरा बचपन ।
कभी लड़ाई कभी प्यार
आज तो बस्स उनका इंतजार ॥

ऐसा नहीं कि मैं हूँ अकेली यहाँ
साथ देने हैं सारी सहेलियाँ ।
सबकी एकजैसीही कहानियाँ
पर क्या करू जब दिलही है वहाँ ॥

मेरी खुशीमें तेरी ख़ुशी ये मैं जानू
इसीलिए कभी शिकायत न कर पाऊँ ।
कभी बहुत याद आ जाये तो क्या करू
आँखमें आंसू आ जाये न जाने क्यों ॥

ऊन बर्फीली पहाड़ियोंमें दूर
एक हमारा था प्यारासा फूल ।
पंखुड़ियाँ उसकी उड़कर गयी दूरतक
इच्छा हैं आके पास महके जीवनभर साथ-साथ  ॥


- रूपाली ठोंबरे 

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